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सामुदायिक सहभोज – जोगीपुर

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26 जनवरी , 2025 की सुबह , सीता नारी संघ , जोगीपुरा की महिलाएं गणतंत्र दिवस मनाने के लिए इकट्ठी हुईं। उन्होंने सामाजिक एकजुटता का जश्न मनाने और भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक सहभोज की योजना भी बनाई थी। उन्होंने पूर्व ग्राम प्रधान आद्या प्रसाद को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए आमंत्रित किया था क्योंकि वे दलित थे। महिलाओं ने राष्ट्रगान और कई देशभक्ति गीत गाए। सामुदायिक भोज का आयोजन मंजू के घर पर किया जाना था जो एक दलित थी। यह एक आसान निर्णय नहीं था क्योंकि कई महिलाओं ने महसूस किया था कि सहभोज सफल नहीं होगा यदि एक दलित परिवार के घर पर आयोजित किया जाए। अन्य जातियां वहाँ शामिल होने से मना कर सकती हैं। लेकिन सीता नारी संघ के कुच्छ महिलाओं ने योजना बनाने के बैठक में जोर देकर कहा था कि अगर हम जाति की बाधाओं को तोड़ने के लिए पहल नहीं करेंगे तो गांव में भेदभाव खत्म नहीं होगा और एकजुटता पैदा करना मुश्किल होगा। कुछ समय पहले ग्रामीण पुनर्जन्म संस्थान के कार्यकर्ताओ ने सीता नारी संघ के सदस्यों को सुझाव दिया था कि वे एक सामुदायिक भोज का आयोजन कर सकते हैं और पूरे गांव को आमंत्रित कर सकते हैं। इस सहभो...

पूर्वांचल के प्रसिद्ध गोविंद साहब

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महान संत महात्मा गोविन्द साहब जी महाराज का जन्म अम्बेडकर नगर के जलालपुर कस्बे में भारद्वाज गोत्रीय सरयू पारीण ब्राह्मण कुल में संवत 1782 के अगहन मास शुक्ल पक्ष की दशमी को पृथु धर द्विवेदी एवं दुलारी देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन में गोविन्दधर के नाम से जानी गयी यह मणि भारतीय संतो की लम्बी श्रृंखला वाली माला में आज दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में चमक रही है। धर्म परायण मां बाप ने बाल्यकाल में ही इनके अन्दर भक्ति भावना का समावेश कर दिया था। साथ ही तारा देवी नामक पति परायण कन्या से विवाह कर गृहस्थ जीवन में भी उतारा था। चूंकि बचपन में इनकी विलक्षण प्रतिभा से लोगो को इस बात का आभास हो गया था कि साधारण ब्राह्नण कुल का यह नन्हा बिरवा आगे चलकर विशाल वट वृक्ष का रूप अवश्य लेगा। जिसके आध्यात्मिक छांव में लोगो को दैहिक , दैविक और भौतिक तापों से शंति मिलेगी और हुआ भी वही। बताते है कि यहां अहिरौली के जंगल मे रहकर साधना करते हुए इनकी ख्याति थोड़े ही दिन में व्यापक रूप ले बैठी और हिंदू मुश्लिम श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो गया। अपने जन्म दिन पर ही ये सार्वजनिक रूप से भक्तों को दर्शन ...

साझा व्यवसाय साझी खेती

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अख्तर मिस्त्री निवासी कोंच जनपद जालौन , जिनकी कोच गल्लामंडी के पास मेन रोड पर दुकान है यह गाड़ी सही करने का काम करते है , यह बताते है कि हम और लक्ष्मी लगभग 10 साल पहले सद्पुरा में अंसारी मिस्त्री के यहाँ काम करते थे इसी दौरान हम दोनों अलग दुकान करने को सोचा तभी से हम लोगो ने मिलकर यहाँ दुकान कर ली साथ काम करते है किसी प्रकार की कोई समस्या नही है मेरे चार बेटे व तीन बेटियां हैं बेटे ऑटो चलाते हैं लक्ष्मी के एक बेटा व एक बेटी है । दुकान पर हम दोनों एक साथ खाना खाते हैं एक दूसरे के यहाँ जब कोई कार्यक्रम होता है तो हम लोग घर की तरह सभी सदस्य जाते हैं त्योहारों में भी एक दूसरे को बुलाते है! रामसिंह निवासी नदीगांव ने बताया कि हमारे पिताजी का नाम श्री मेहरवान सिंह था हम तीन भाई है लगभग 40 साल पहले फसल की सिंचाई के लिये कोई साधन नही था तभी मैने सिचाई के लिये डीजल पम्प खरीदा लेकिन एक दिन डीज़ल पम्प खराब हो गया उस समय ज्यादा मिस्त्री नही होते थे हमारे रिश्तेदार ग्राम लोहाई के थे जो इंजन सही करना जानते थे गांव 6 किलोमीटर दूर था सीधे पैदल खेतो से होकर आते थे दो दिन हो गये थे सही करते करते लेकिन इ...

जहां रूहानी परेशानी के लिए देश भर से लोग आते हैं

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किछौछा शरीफ दरगाह, अंबेडकरनगर  - अम्बेडकर नगर जनपद में स्थित प्रसिद्व सूफी सन्त हजरत मखदूम अशरफ की अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध किछौछा दरगाह आज भी हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई समेत विभिन्न धर्मों के लाखों अनुयायियों के लिए भक्ति , आस्था व श्रद्वा का एक ऐसा केन्द्र है जहॉ दुखियारे और परेशान हाल लोग रोते हुए आते है और दर्शन करने के उपरान्त मुस्कुराते हुए अपने घरों को लौटते हैं। इसलिए इस दरगाह को रूहानी (अध्यात्मिक) इलाज का सबसे बडा केन्द्र भी कहा जाता है। किछौछा शरीफ प्रसिद्ध सूफी संत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर अशरफी की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म ईरान में सेमनान में हुआ था और विशेष रूप से चिश्ती पद्धति को आगे बढ़ाने में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया। इन संत ने बहुत यात्राएं की और लोगों तक शान्ति का सन्देश पहुँचाया। समरकन्द , मुल्तान , दिल्ली , विहार , बंगाल , जौनपुर होते हुए अन्त में हजरत मखदूम अशरफ किछौछा पहुॅंचे यहॉ रहकर मखदूम अशरफ ने अपने जीवनकाल में गरीबों , मजलूमों , बीमार लोगों के घावों जख्मों पर इन्सानियत का मरहम लगाते रहे। उनके आशीर्वाद और अदभुत दिब्य शक्...

खुबसूरत मिसाल है शहर-ए-बनारस में होने वाला अगहनी जुमा

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वाराणसी - धार्मिक एकता को हम ‘सांझी विरासत’ के तौर पर देखते है , जहा आपसी मुहब्बत और भाईचारगी धर्म और जाति बंधन से ऊपर है। कई ऐसे उदहारण आज भी हर एक शहर में ज़िंदा मिसाल है जो इस सांझी विरासत को दिखाते है। साझी विरासत हमारे मुल्क हिन्दुस्तान का वो खुबसूरत नगीना है , जिसने हमारे मुल्क को दुनिया के नक़्शे पर चमका रखा है। यही धार्मिक एकता को हम ‘सांझी विरासत’ के तौर पर देखते है , जहा आपसी मुहब्बत और भाईचारगी धर्म और जाति बंधन से ऊपर है। कई ऐसे उदहारण आज भी हर एक शहर में ज़िंदा मिसाल है जो इस सांझी विरासत को दिखाते है। साझी विरासत हमारे मुल्क हिन्दुस्तान का वो खुबसूरत नगीना है , जिसने हमारे मुल्क को दुनिया के नक़्शे पर चमका रखा है। नमाज़ पढ़ कर नमाज़ी हिन्दू भाइयों से गन्ने खरीद कर घर लेकर जाते है जब बात आपसी एकता और भाईचारगी यानी सांझी विरासत की हो तो शहर बनारस इसका एक बड़ा उदहारण है। शहर बनारस में तो तानी बाने का रिश्ता होता है। जहाँ तानी का पूरा कारोबार हिन्दू समुदाय के हाथो में है , वही बाने यानी पक्के माल का कारोबार मुस्लिम समुदाय के हाथो में है। बिना तानी के बाना तैयार नही होगा , यह बात ज...