पूर्वांचल के प्रसिद्ध गोविंद साहब

महान संत महात्मा गोविन्द साहब जी महाराज का जन्म अम्बेडकर नगर के जलालपुर कस्बे में भारद्वाज गोत्रीय सरयू पारीण ब्राह्मण कुल में संवत 1782 के अगहन मास शुक्ल पक्ष की दशमी को पृथु धर द्विवेदी एवं दुलारी देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन में गोविन्दधर के नाम से जानी गयी यह मणि भारतीय संतो की लम्बी श्रृंखला वाली माला में आज दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में चमक रही है।



धर्म परायण मां बाप ने बाल्यकाल में ही इनके अन्दर भक्ति भावना का समावेश कर दिया था। साथ ही तारा देवी नामक पति परायण कन्या से विवाह कर गृहस्थ जीवन में भी उतारा था। चूंकि बचपन में इनकी विलक्षण प्रतिभा से लोगो को इस बात का आभास हो गया था कि साधारण ब्राह्नण कुल का यह नन्हा बिरवा आगे चलकर विशाल वट वृक्ष का रूप अवश्य लेगा। जिसके आध्यात्मिक छांव में लोगो को दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से शंति मिलेगी और हुआ भी वही।

बताते है कि यहां अहिरौली के जंगल मे रहकर साधना करते हुए इनकी ख्याति थोड़े ही दिन में व्यापक रूप ले बैठी और हिंदू मुश्लिम श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो गया। अपने जन्म दिन पर ही ये सार्वजनिक रूप से भक्तों को दर्शन देते थे। इन्हीं कृपा से बलिया के एक व्यापारी की माल बन्दी नाव डूबने से बची। कई निःसंतान दम्पत्तियों को संतान सुख प्राप्त हुआ। आजमगढ़ की एक गायक मण्डली को चमत्कारिक रूप से नेपाल नरेश की कैद से मुक्ति मिली। बताया तो यह भी जाता है कि सैय्यद हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी किछौछवी व संत पल्टूदास से भी इनका जबर्दस्त शास्त्रार्थ हुआ और सभी ने शिष्यत्व स्वीकार कर इनकी महानता ही बखानी।

यही रहकर महात्मा गोविन्दसाहब जी महाराज ने भक्ति साहित्य का सृजन कर यह प्रमाणित किया कि इनकी भक्ति साधना का पक्ष जितना उज्जवल रहा साहित्य का ज्ञान पक्ष भी उससे कम नहीं रहा। तमाम पदो, छंदो, भजनों का सृजन कर बाबा गोविन्द साहब ने स्वयं को कबीर, नानक, दादू दयाल और रैदास की कोटि में खड़ा किया। सत्य, अहिंसा और एकता का संदेश देकर महात्मा गोविन्दसाहब जी महाराज सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का बीजारोपण कर संवत 1879 के फाल्गुन कृष्णपक्ष एकादशी को अपने भक्तों को अंतिम उपदेश देकर ब्रह्नलीन हो गये। आज उनकी समाधि स्थली पर भव्य मंदिर और इसी से सटा गोविन्द सरोवर लाखों लोगो की श्रद्धा व आस्था का केन्द्र बना है।

गोविंद साहब का ऐतिहासिक मेला,हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक

अम्बेडकर नगर और आजमगढ़ जिले की सीमा पर स्थित अहिरौली ग्रामसभा मे सिद्ध संत महात्मा गोविन्द साहब की समाधि लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। खास बात तो यह है कि यहां प्रसाद के रूप में मिष्ठान नहीं बल्कि समाधि पर चादर, कच्ची खिचड़ी और लाल गन्ना चढ़ाया जाता है जो अनवरत चलता आ रहा है। दिसंबर से जनवरी माह में लगने वाले मेले की तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती है,जिसमें दुकानदार और श्रद्धालु के रूप में मुस्लिम भी पहुँचते है। गोविंद दशमी पर लगने वाले मेले में दूर दूर से आये लाखों श्रद्धालु पवित्र सरोवर में डुबकी लगाते है।

बता दें कि गोविन्द साहब के मेले का तीन भाग अम्बेडकर नगर जनपद के आलापुर तहसील में पड़ता है जबकि एक हिस्सा आजमगढ़ जनपद के अतरौलिया थानान्तर्गत ग्राम लोहरा व अमड़ी ग्रामसभा में आता है।

उन्होंने सभी धर्मो और जातियों को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया। आज भी यहां आने वाले हिंदू मुस्लिम श्रद्धालु समाधि पर चादर और चावल-दाल मिश्रित कच्ची खिचड़ी के अलावा रसपूर्ण लाल गन्ना चढ़ाते है।

मेले में आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, मऊ, महराजगंज, गोरखपुर, वाराणसी, अम्बेडकर नगर, फैजाबाद के अलावा आस-पास के अन्य जनपदों के साथ बिहार, बंगाल,झारखंड, राजस्थान आदि प्रान्तों से भी लाखों लोग आते है। मेले में आने वाले गोविन्द सागर में स्नान के बाद समाधि पर खिचड़ी चढ़ाते है।

पूर्वाचल का प्रसिद्ध गोविन्द साहब आस्था और पर्यटन के दृष्टिकोण से बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थल है। इस स्थान पर पूरे वर्ष लोग बाबा की समाधि पर खिचड़ी व चादर चढ़ाते है। करीब चार सौ वर्ष पहले इसी स्थान पर बाबा गोविन्द साहब ने जीवित सामाधि ले लिया था। उसी समय से इस पर्यटन केन्द्र पर दशमी तिथि को प्रत्येक वर्ष भव्य मेले का आयोजन होता है। यहाँ पर लाखों की संख्या में हिंदू मुस्लिम श्रद्धालु आ कर गोविंद सरोवर में स्नान कर पवित्र गोविद साहब मठ की परिक्रमा करते हुए खिचड़ी चढ़ाते है और अपनी आस्था के मुताबिक मन्नते मांगते है। खेती किसानी के यत्रों के अलावा, हाथी, घोडे, खच्चर, तथा अन्य मवेशियों की मंडी लगती है। जहाँ पर श्रद्धालु / पर्यटक इनकी खरीदारी करते है। यह पर्यटन एवं आस्था का केन्द्र स्थानीय लोगों के साथ हिंदू मुस्लिम सभी को रोजगार प्रदान करती है, जहाँ पर लोग अपने सामान बेच कर लाभ अर्जित करते है। मेले को स्वच्छ और सुचारू ढंग से संचालित करने के लिए पर्यटन विभाग, पुलिस प्रशासन तथा अन्य सामुदायिक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इस पवित्र पर्यटन स्थल पर पहुंचने के लिये सडक एवं रेलमार्ग की सुविधा उपलब्ध है। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्रिकेट मैच के बहाने युवाओं में सामाजिक सौहार्द्य बढ़ी

सामुदायिक सहभोज – जोगीपुर

पुराने दोस्तों से दुबारा जुड़ना