पुराने दोस्तों से दुबारा जुड़ना

1989 की बात है जब मैं हाईस्कूल पास करके अपने जिले बाँदा से इन्टर में पढाई के लिए चित्रकूट इन्टर कॉलेज कर्वी जनपद चित्रकूट गया था। कॉलेज में पहले ही दिन यासीन सिद्दकी से मुलाकात और परिचय हुआ। इस दौरान पुराने दोस्त विशाल साइमन ने तब अतर्रा, बाँदा में ही एडमिशन ले लिया था। इन्टर की पढाई पूरी करने के बाद हम तीनों लोग आगे की पढाई और फिर काम के चलते एक दूसरे से दूर हो गए थे। मैं भी अपने काम के कारण बाहर चल गया और वे भी अपनी जिंदगी के प्रवाह में जुड़ गए। पढाई के बाद यासीन ने मेरे घर से 15 किमी० दूर अपने कस्बे नरैनी में मेडिकल स्टोर खोल लिया तथा विशाल झाँसी में एक हॉस्पिटल में नौकरी करने लगे तथा परिवार के साथ वहीँ रहने लगा। विशाल से कभी-कभी मुलाकात तो हो जाती और बैठकर बातें भी करते लेकिन यासीन से तो कोई मुलाकात नहीं हो पाई। इस बीच 2021 मैं भी बांदा लौट आया।

यासीन के साथ उसके मेडिकल स्टोर में
हमकदम की प्रक्रिया में शामिल होने के बाद,  मुझे एहसास हुआ कि मेरा उनसे पूरी तरह से संपर्क टूट गया है और मै यासीन से संपर्क बहाल करने के लिए बहुत उतावला हुआ है और एक दिन उसके घर नरैनी जाकर मिला। हम लोग अभी एक-दूसरे से नियमित तौर पर मिलते हैं और अपना हाल समाचार तथा पुरानी बातें एक दूसरे को साझा करते हैं। इस सिलसिले को आगे बढ़ाते  हुए हम लोग बैठकर अपनी हर तरह की बातों और चिंताओ को भी साझा करने लगे।

अब तक मुझे स्पष्ट रूप से समझ आने लगा था कि बहुसंख्यक (हिंदू) होने के नाते मेरी स्थिति यासीन (मुस्लिम) और विशाल (क्रिश्चन) से कितनी अलग है। पिछले तीन सालों में हमकदम की प्रक्रिया से जुड़ने के शुरूआती दौर से ही विशाल के साथ फ़ोन पर नियमित

विशाल के मम्मी-पापा के सालगिरह में उसकी पत्नी-बच्चे व दोस्त के साथ 

तौर पर बातचीत हो जाती तथा सुख-दुःख की बातें भी होती रहती। जब तक यासीन का कोई संपर्क नंबर नहीं था तब तक बेचैनी ज्यादा रही  क्योकि चित्रकूट इन्टर कॉलेज, कर्वी में पढाई के दौरान होने वाली घटनाएँ फिर ताजा होने लगीं.  कर्वी में मैं जिस मकान में रहता था उसके हिन्दू मालिक ने यासीन के लिए कहा था कि इसकों रूम में मत लाया करो लेकिन इसके बावजूद हम दोनों का एक दूसरे के कमरे में आना-जाना बना रहा। 1990 में गर्मी की छुट्टी के बाद इन्टर के दूसरे साल जब हम दोनों फिर से कर्वी में मिले तो हमने एक ही रूम लेकर रहना तय किया। इस दौरान रूम खोजने के लिए जब हम दोनों एक जगह गए तो हिन्दू मकान मालिक ने कहाँ गया कि मुसलमान को हम रूम नहीं देगे क्योकि ये गोश्त खाकर मकान खराब कर देते हैं। इस तरह का अनुभव मेरे लिए पहली बार हुआ था और महसूस हुआ कि हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग हैं। इसके पहले भी स्कूल में हमारे कई मुस्लिम दोस्त थे लेकिन येसा कभी महसूस नहीं हुआ। इस घटना के बाद हम दोनों एक मुस्लिम मकान मालिक और फिर हिन्दू मकान मालिक के घर में किराएँ में रहे। हम लोग आपस में मिलकर खाना बनाते, साथ में खाते, कोचिंग जाते और फिल्म देखने भी जाते, हम लोग धीरे-धीरे एक दूसरे के धर्म के बारे में भी बात करने लगे थे और कुछ समय के बाद बहुत बहस करते थे। जिस दिन यासीन रूम में नानवेज बनाता उस दिन मै बहुत गुस्सा होता और जब तक वो ठीक से बर्तन न धुल दे तब तक खाना नहीं बनाता था। साथ में रहने का ही असर है कि मैं भी पहली बार वहीँ से अंडा खाना सीखा। कई बार हमारे आपसी मतभेद भी होते लेकिन एक साथ ही रहते और खाना बनाकर खाते थे, कॉलेज एक साथ आते जाते थे। जब अपने-अपने घर आते थे तो फिर वहां से एक दूसरे के घर जाते और परिवार के लोगों से मिलते थे।

हमकदम की प्रक्रिया ने मुझे अपने दोनों दोस्तों के पुराने संबंधों, अनुभवों और वर्तमान परिस्थिति को समझने और सोचने के लिए विवश किया। लम्बे गैप के बाद जब मैं यासीन से मिला तब नए रिश्तों की अनुभूति हुई क्योकि हम पुराने अनुभवों के साथ आज की स्थिति पर बात कर पा रहे हैं तथा मन की बातें कह पा रहे हैं। एक दूसरे के घर आना तथा पर्वो, शादी आदि में शामिल होना, जरूरत में मदद की मांग करना आज ये एक नई अनुभूति और सुकून देता है। मेरे दोनों पुराने और आज की नई सोच रखने वाले दोस्त आज मुझे मेरे व्यक्तिगत और संस्थागत काम में जुड़कर मानसिक तौर पर सहयोग कर रहे हैं।

महेन्द्र कुमार, हमकदम


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