आजमगढ़ में स्थित गुरुद्वारा चरण पादुका साहिब

 उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पास रानी की सराय बाजार से करीब 8 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में निजामाबाद कस्बा में पूर्वांचल का सबसे बड़ा गुरुद्वारा चरण पादुका साहिब है। अतरौलिया से लगभग 2 घंटे दूर स्थित इस गुरुद्वारा का दौरा हमने 22 अप्रैल को किया । तमसा नदी के किनारे दो हिंदू मंदिर के बीच में यह गुरुद्वारा स्थित है तथा इसी से 500 मीटर दूर एक मस्जिद है। इसी स्थान पर रामलीला भी होता है और रामलीला स्थान से ही मुस्लिम भाइयों द्वारा ताजिया भी उठाया जाता है । यह बहुत पुरानी परंपरा से चलता चला आ रहा है। आज भी इसी स्थान पर रामलीला होता है और ताजिया भी उठता है।

सर्वप्रथम हम गुरुद्वारा चरण पादुका साहिब में गए और वहाँ के राजू जी से मिले और अपना तथा अपनी संस्था का परिचय दिया। हमने उनसे बताया की हम लोग यहां के गुरुद्वारा और यहां के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं। जिसके बाद राजू जी ने हमे गुरुद्वारा के पवित्र स्थान का दर्शन करवाया।  उन्होंने बताया की यह बहुत साल पुराना हो गया था जिसकी वजह से इसकी दीवारें गिरने लगी थी अब इसे फिर से बनवाया जा रहा है जिसका निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है ।

यहाँ के गुरु जत्थेदार सतनाम सिंह जी से मिला गया और इस स्थान को लेकर गुरुजी का एक छोटा सा इंटरव्यू लिया गया और गुरु जी द्वारा सरोपा भेंट की गई । गुरु जी का उपदेश था कि यहां पर किसी भी प्रकार का कोई जातिगत भेदभाव नहीं किया जाएगा और न ही उन्होंने ऐसा किया । यहां पर सभी धर्म के लोग आते रहते हैं। इसके बाद वहां गुरु जी द्वारा बताया गया कि यहां पर हर साल मार्च के महीने में सालाना 3 दिन का गुरुमत समाग़म समूह संगत के सहयोग से संत बाबा निरंजन सिंह जी व संत बाबा प्रीतम सिंह जी की देखरेख में आयोजित होती है, जिसमें विभिन्न प्रदेशों से सिख संगतें शामिल होती हैं, आप भी यहां पर अपने सभी साथियों के साथ आएं । इसके लिए गुरुजी द्वारा आमंत्रित किया गया ।

राजू जी ने हमे वहां पर रखे 31 हस्तलिखित किताबों के बारे में बताया गया इसके सोने, चांदी, पीतल और अन्य सामग्रियों को मिलकर इसकी स्याही बनाई गई थी जिस स्याही से इन किताबों को लिखा गया है वह हस्तलिखित किताबे आज भी सुरक्षित है और किताबों को दिखाया गया और बताया गया कि यह 4 सौ से 5 सौ साल पुरानी किताबें है । इन किताबों को अभी भी इस गुरुद्वारे में सुरक्षित जगह पर रखा गया है, जिसमें 25 हस्तलिखित आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी और 6 हस्तलिखित दशम गुरु ग्रन्थ और कुछ छोटी पोथियां हैं जिसको दिखाया गया।

हमने गुरुद्वारा में स्थित दुख भजन कुआं भी देखा। इस कुएं को गुरुतेग बहादुर साहिब जी महाराज ने बनवाया था । इस पवित्र कुएं के अमृत जल से रोगियों के रोग को दूर किए थे । राजू जी ने बताया कि अब इस कुएं से जल नहीं निकाला जाता ।  इस कुएं से कुछ पुरातन चीजें निकली है जिसके बाद इसकी खुदाई करवाई गई । खुदाई के दौरान कुएं से एक बड़ा घड़ा निकला जो आज भी सुरक्षित रखा गया है और इसमें कुछ पुराने शस्त्र जैसे - नेजे, ढाल, तलवार, कवच आदि निकले है जो यहां पर रखे गए हैं। और वहां पर रखे श्री गुरुनानक देव जी और तेग बहादुरी जी के खडावे दिखाया गया और बताया गया कि जब गुरु तेग बहादुर जी महाराज यहां से विदा होने लगे तो संगतों ने विनती की कि आप अपनी तरफ से हमें कुछ निशानी देकर जाएं तब गुरु जी ने अपनी चरण पादुका ( खड़ाऊ) निशानी के रूप में बख़्शिश की । यह खडावें आज भी इस स्थान पर सुशोभित हैं। जिसके बाद वहां पर चल रही श्री गुरुनानक देव जी डिजिटल लाइब्रेरी को दिखाया गया और बताया गया कि यहां पर बच्चों से 400 रूपये फीस लिया जाता है, बच्चे समय से लाइब्रेरी आते हैं।

गुरु जी वहाँ के ऐतिहासिक तमसा नदी के बारे में भी बताया। नदी के इस किनारे पर गुरुद्वारा (छोटी संगत) स्थित है जहां पर गुरु जी ने राम निवास कायस्थ (गौड़) नमक मृतक व्यक्ति को जीवित किया था । नदी के दूसरे तट पर आनंद बाग है जो पहले सूखा हुआ करता था । गुरु महाराज के चरण लड़ते ही वह हरा भरा हो गया । इसी नदी के किनारे कुछ किलो मीटर की दूरी पर दुर्वासा ऋषि जी, दत्तात्रेय ऋषि जी व चंद्रमा ऋषि जी का भी स्थान है। गुरुनानक देव जी जब निजामाबाद आए तो उन्होंने भी इसी नदी के किनारे अपना डेरा किया और निजामाबाद के निवासी व कुछ पड़ोस गांव के लोग सुबह शाम इस पवित्र स्थान पर 21 दिन तक तप किया  व संगतों को प्रभु भक्ति से जोड़ा । कुछ समय के बाद बाबा श्री चंद जी आए और यहां के लोगों पर बड़ी कृपा व बड़े उपकार किए।

वापसी के समय प्रसिद्ध कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का स्मारक देखा गया

एक साथ : मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा
एक साथ : मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा

राजदेव चतुर्वेदी 

ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान 

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